सोया नहीं हु मैं
कुछ अजब सी रातों से।
न जाने क्यों
विश्वास उठा है
उन गज़ब सी बातों से,
जिन्हें सुनकर मैने
अपने मन में
सपनो के दीपक जलाएं थे।
पर अब न जाने क्यों
इस हृदय के स्रोतों में
नीर ढूंढने पथिक भटके है
वर्चस्व की राह तलाश में
न जाने क्यों?
इसीलिए शायद,
सोया नहीं हूँ कुछ रातों से
ज्ञान की प्यास में।
आपबीती मैं किसे बताऊं?
जो पल पल मुझे सुलाती है;
इन दुनियादारी की बातों से
मेरे मन की नैया
डूबने पर मजबूर हो जाती है।
अगर चहुँ मैं बताना
कौन आखिर सुनेगा
क्या यह होगा सतना?
मेरा मन यह सोचेगा।
कौन आखिर समझेगा?
इस राही का हंसाना।
सोया नहीं हूं मैं
उजरी उजरी रातों में
जहां से मैं निकला
अब मैं ना लौट पाऊंगा
इस बात के डर से आखिर
कितने झूट छिपाऊँगा
थक चुका हूं मैं
पराती दाल तंदुल से
रहता हूँ मैं मन से प्रेमी
क्या बिक चुका हूँ मैं
अपनो से दूर होना
क्या यही सीखूंगा मैं जीवन से?
सोया नहीं हूँ मैं कुछ दिन रातों से
हंसना कोई भाव नही,
रोना मक्कारी है।
नाटक नाटक में हूँ सीखता,
खोकर पाना, पाकर खोना
जीवन की दिलदारी है।
कहना चाहता हूँ मैं
अपने गिने टुकड़ों से
पर मैं गुमनाम रह जाता हूँ
उन सारे अनजाने अंशों में।
सोया नहीं हूं मैं
क्योंकि जागने का अब वक्त नही,
सपनों में बातें करना
इतना मुझमे रक्त नहीं।
वास्तविकता के शिकारी
ढूंढ रहे है मुझे
इस छोटेसे जीवन मे,
खोना नहीं है मुझे
अस्तित्व मेरा
लोभी माया वन में।
इसीलिए अब मैं
सोता नही हूँ रातों में
क्योंकि सोना चाहता हूँ मैं
अपने हृदय में
भविष्य की सौगातों में।
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